"जैसा कि अक्षर 'द' संकेत करता है, बाबा भी भक्तो के हित के लिए उनसे दान (दक्षिणा) माँगा करते थे I "दयालु बनो उदार ह्रदय से दान दो और अपनी इन्द्रियों को काबू में करो, तब तुम अनंत सुख का अनुभव करोगे" I
28.2.11
27.2.11
शिर्डी के साईं सन्देश
"भक्त चाहे स्वार्थी ( जिसे सांसारिक विषयों की इच्छा हो) या परमार्थी ( जिसे आध्यात्मिकता की इच्छा हो) हो, उसे अपनी इच्छापूर्ति और अपने हित के लिए गुरु को दक्षिणा देनी चाहिए" I
26.2.11
शिर्डी के साईं सन्देश
"जो दक्षिणा देते है, वे उच्च स्थान (यानि स्वर्ग) प्राप्त करते हैं; जो स्वर्ण अर्पण करते हैं, उन्हें उच्चज्ञान (यानि मोक्ष) की प्राप्ति होती है I उसी प्रकार स्वर्ण और दक्षिणा देने से धन कि प्राप्ति होती है" I
25.2.11
शिर्डी के साईं सन्देश
"धन संचय का उद्देश्य यह होना चाहिए कि उसका व्यय दान-धर्म आदि के भले कार्यो में हो I लेकिन, इसकी बजाय उसे केवल तुच्छ शारीरिक अथवा इन्द्रियों के आनंद से सम्बन्धित सुखों के लिये खर्च किया जाता है" I
24.2.11
शिर्डी के साईं सन्देश
"इस जगत में ऐसे असंख्य गुरु शिष्य हैं जो आध्यात्मिक उपदेश देते और लेते हैं I लेकिन वास्तव में ऐसा गुरु बिरला ही होता है,जो उपदेश (ज्ञान) के साथ उसकी अनुभूति भी करवाता है" I
23.2.11
शिर्डी के साईं सन्देश
"महान साधु-संत ऐसे होते हैं, कि जिनकी वाणी से ईशवर स्वयं बोलते हैं I उनके लिए कुछ भी अप्राप्य और अज्ञानता नहीं है" I
22.2.11
शिर्डी के साईं सन्देश
"ऐसा प्रतीत होता है, मानो चन्द्र जल में है; जबकि वास्तव में वह बाहर होता है I इसी प्रकार संत भी भक्तों से घिरे प्रतीत होते हैं,परन्तु वस्तुत: वे निलिर्प्त होते हैं" I
21.2.11
शिर्डी के साईं सन्देश
"जिसने नाम, रूप आदि बाधओं को त्याग दिया हो और विशुद्ध ईशवर की अनुभूति प्राप्त कर ली हो, वह सिद्ध है, जो माया से नहीं बँधता और सदा आत्मलीन रहता है" I
20.2.11
शिर्डी के साईं सन्देश
"परस्पर विरोधी तथा मिथ्या विचार सर्वदा चित्त को भ्रमित करते है फलस्वरूप प्राणी सर्वदा दुशिचत्त हो कर जन्म- मरण आदि का दुःख अनुभव करता है" I
19.2.11
Shirdi ke Sai ka Sandesh
"जब अज्ञानता का अंधकार दूर होता है तो सकल सृष्टी लुप्त होती लगती है और दृष्टी आत्मा के एकत्व से परिपूर्ण हो जाती है I तत्काल ही द्वैतवाद का भ्रम नष्ट हो जाता है" I
18.2.11
Shirdi ke Sai ka Sandesh
"चित्त में द्वैतवाद का अंश भी एकत्व की भावना को पूर्णत: नष्ट करके तुरंत ही भेद-भाव की भावना को जाग्रत कर देता है I वही जन्म-मरण का कारण बन जाती है" I
17.2.11
शिर्डी के साईं सन्देश
"व्यक्ति स्वभाव से ही स्वयं को ब्रह्म से पृथक मानता है Iअविद्या और मोह के कारण भी कई भूलें कर देता है I इसके अलावा द्वैतवाद के असर में उसका चित्त भ्रमित हो जाता है I परन्तु एकत्त्व का बोध हो जाने पर वह शान्त हो जाता है" I
16.2.11
शिर्डी के साईं सन्देश
"द्वैतवाद की स्थापना करने वाली बुद्धि वास्तव में अविद्या होती हैI गुरु के संपर्क में आने के पशचात्त चित्तशुद्धि होती है I उसी के कारण आत्मानुभूति (स्वारुपस्थिति) की स्थिति की प्राप्ति होती है"I
15.2.11
शिर्डी के साईं सन्देश
"जिसने सत्तत्व (यानि ब्रह्म) को समर्पण कर दिया है, वह सभी में एकत्व का अनुभव करता है I और जो द्वैतवाद (माया और ब्रह्म को पृथक-पृथक मानने का सिद्धांत) पर विशवास करते हैं, वे जन्म-मरण के चक्र में फसं जाते हैं" I
14.2.11
शिर्डी के साईं सन्देश
'ब्रह्म' या 'सत्तत्व' जो इस पिंडी (हमारे शारीर) में है, वही अखिल ब्रह्माण्ड में भी व्याप्त है I यह सदेव स्मरण रखो और अपना समस्त शरीर ईशवर कि सेवा में लगा दो I
13.2.11
शिर्डी के साईं सन्देश
"ब्राह्म द्रष्टि से ऐसा प्रतीत होता था कि बाबा कुछ नहीं करते I वे अपना स्थान छोड़कर भी कहीं नहीं जाते थे I लेकिन एक स्थान पर बैठकर भी वे सर्वज्ञाता थे और सभी को उसका प्रमाण भी दिया करते थे" I
12.2.11
शिर्डी के साईं सन्देश
"जो बिना किसी भेद-भाव के चोकस रह कर संसार में व्यवहार करता है, उसे बिना प्रयास के परमार्थ की प्राप्ति हो जाती है I इसलिये सांसारिक विषयों में लापरवाही और आलस्य नहीं होना चाहिए I पुरषार्थ यानि मानव जीवन के चार उदेश्य के प्रति अरुचि नहीं होनी चाहिए" I
11.2.11
शिर्डी के साईं सन्देश
"जो नित्यप्रति मेरा नामस्मरण और पूजन कर मेरी कथाओं ओर लीलाओं का प्रेमपूर्वक मनन करते हैं, ऐसे भक्तों में सांसारिक वासनाएँ ओर अज्ञानरुपी प्रवर्तियाँ कैसे ठहर सकती हैं ? में उन्हें म्रत्यु के मुख से बचा लेता हूँ I"
10.2.11
9.2.11
Shirdi ke Sai ka Sandesh
"साधू वह नहीं जो स्वादु है बल्कि वह होता है,
जो अपने जीवन को साध ले" !
( निस दिन जपो श्री साईं राम, साईं राम )
जो अपने जीवन को साध ले" !
( निस दिन जपो श्री साईं राम, साईं राम )
7.2.11
Shirdi ke Sai ka Sandesh
"चरणामृत तभी प्राप्त हो सकता है जब रिक्त हाथो से प्रभु क चरणों को सब्र व् श्रधा रूपी जल से धोया जाये" !
4.2.11
Shirdi ke Sai ka Sandesh
"तन से मिली विरक्ति,
साईं वचन अपनाकर,
आतम - ज्ञान ऐसा मिला,
उनको गुरु बना कर "
( साईं राम मेरा सच्चा गुरु )
साईं वचन अपनाकर,
आतम - ज्ञान ऐसा मिला,
उनको गुरु बना कर "
( साईं राम मेरा सच्चा गुरु )
Shirdi ke Sai ka Sandesh
"ध्यान करो नित प्रेम से,मुरत मन में सजायेभक्ति में ऐसे रमो,बाबा दौड़े दौड़े आयें"
3.2.11
Shirdi ke Sai ka Sandesh
यदि भक्त बाबा जी की असली दौलत ( ज्ञान,सब्र,त्याग ) को पाने की इच्छा जाहिर करे तो र्साईं जी नंगे पाँव दौड़े चले आएँगे !
(हर दिन रटो श्री दिव्या नामा --- श्री साईं नामा )
Shirdi ke Sai ka Sandesh
"मुझ पर पूर्ण विश्वास रखो I यधपि मै देहत्याग भी कर दूँगा, परन्तु फिर भी मेरी अस्थियाँ आशा और विश्वास का संचार करती रहेंगी I केवल मै ही नहीं, मेरी समाधि भी वार्तालाप करेगी, चलेगी, फिरेगी, ओर उन्हें आशा का सन्देश पहुँचाती रहेगी, जो अनन्य भाव से मेरे शरणागत होंगे I
निराश न होना कि मै तुमसे विदा हो जाऊँगा I तुम सदैव मेरी अस्थियों को भक्तों के कल्याणार्थ ही चिंतित पाओगे I यदि मेरा निरंतर स्मरण और मुझ पर दृढ विश्वास रखोगे तो तुम्हें अधिक लाभ होगा I "
निराश न होना कि मै तुमसे विदा हो जाऊँगा I तुम सदैव मेरी अस्थियों को भक्तों के कल्याणार्थ ही चिंतित पाओगे I यदि मेरा निरंतर स्मरण और मुझ पर दृढ विश्वास रखोगे तो तुम्हें अधिक लाभ होगा I "
2.2.11
Shirdi ke Sai ka Sandesh
"प्यासे को जल, भूखे को भोजन, निर्वस्त्र को वस्त्र और आश्रय -हीन को घर दो ईशवर तुम्हारा कल्याण करेगा" !
1.2.11
Shirdi ke Sai ka Sandesh
"सुनना अधिक चाहिए और बोलना कम,
मधुर वचन सदा दुसरो को मोह लेते है!"
* सदा -सदा ही साईं नाम सिमरो जी *
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