11.7.11

साईं मुख वचन

 " अच्छा कर्म करो और उसे अपने सदगुरु को अर्पित कर दो, वह तुम्हारा कल्याण करेंगे "

5.4.11

"सांचा हो श्री बह्मा का,आतम द्रव्य कहलाये, 

  ढलकर जो मूरत बने,वह साईं कहलाए"


31.3.11

"श्री सच्चिदानन्द सदगुरु साईनाथ महाराज की जय"

"प्रेम तथा भक्तिपूर्वक अर्पित किया गया फूल और पान भी उनके द्वारा सहर्ष स्वीकार कर लिया जाता था I परन्तु अगर वह अहंकारसहित भेंट की जाती थी, तो वे तुरंत अस्वीकार कर देते थे"I

16.3.11

शिर्डी के साईं सन्देश

"मै तुम्हारे ह्रदय मे विराजमान हूँ, तुम्हे नित्य मेरी उपासना करनी चाहिए I सभी जीवित प्राणियों के ह्रदय में, केवल मै ही व्याप्त हूँ" I

15.3.11

शिर्डी के साईं सन्देश

ईशवर के नाम का आसरा ले सब मुश्किल अपने आप हल हो जायेंगी !

9.3.11

शिर्डी के साईं सन्देश

"चाहे इस संसार में तुम कही भी जाओ, में हर जगह तुम्हारे साथ ही जाता हूँ I तुम्हारा ह्रदय ही मेरा घर है; में तुम्हारे अंत:करण में निवास करता हूँ" I

8.3.11

शिर्डी के साईं सन्देश

"प्रेम बिना भजन, बिना अर्थ समझे ग्रंथो का उच्चारण और पठन - पाठन किस काम का? और बिना श्रद्धाभाव के देवता कहाँ ? क्या इनके अभाव में सभी प्रयत्न  सारहीन और व्यर्थ नहीं होते" ?

7.3.11

शिर्डी के साईं सन्देश

"परम दयालु साईं समर्थ अपने भक्तों के हित के लिए ही दक्षिणा माँगा करते थे I इस प्रकार वे उन्हें आत्मत्याग की शिक्षा देते थे" I

6.3.11

शिर्डी के साईं सन्देश

"कुमकुम तिलक-विहीन मस्तक, अनुभव विहीन ज्ञान, सभी व्यर्थ होते है I ये पुस्तकीय ज्ञान के बोल नहीं हैं I स्वयं इनके सत्य का अनुभव करो और फिर फैसला  करो" I

5.3.11

शिर्डी के साईं सन्देश

"यधपि में शरीर से तो यहाँ हूँ और चाहे तुम सात समुन्द्रो के पार भी हो; फिर भी जो तुम वहां करते हो, मुझे उसी क्षण उसका ज्ञान हो जाता है" I   

4.3.11

शिर्डी के साईं सन्देश

"तुम सब चाहे कहीं भी हो, जैसी भक्ति तुम्हारी होगी, उसी भाव से में दिन- रात तुम्हारी रक्षा करूँगा" I

3.3.11

शिर्डी के साईं सन्देश

"साईं महाराज ज्ञान का भण्डार हैं I मस्जिद में बैठकर, उन्हें भूत, भविष्य और वर्तमान का पूर्ण ज्ञान था, चाहे वह संसार के किसी भाग में घटित क्यों न हो रहा हो" I

2.3.11

शिर्डी के साईं सन्देश

"जान लो कि काम, क्रोध और लोभ, नर्क को जाने के तीन द्वार हैं, जो आत्मविनाश की और अग्रसर करते है I इसलिए सतर्कतापूर्वक इनका त्याग करना चाहिए" I

1.3.11

शिर्डी के साईं सन्देश

"काम, क्रोध और लोभ आत्म-उन्नति के लिए अशुभ हैं I इनको जीत पाना अति दुर्लभ है"I

28.2.11

शिर्डी के साईं सन्देश

"जैसा कि अक्षर 'द' संकेत करता है, बाबा भी भक्तो के हित के लिए उनसे दान (दक्षिणा) माँगा करते थे I "दयालु बनो उदार ह्रदय से दान दो और अपनी इन्द्रियों को काबू में करो, तब तुम अनंत सुख का अनुभव करोगे" I

27.2.11

शिर्डी के साईं सन्देश

"भक्त चाहे स्वार्थी ( जिसे सांसारिक विषयों की इच्छा हो) या परमार्थी ( जिसे आध्यात्मिकता की इच्छा हो) हो, उसे अपनी इच्छापूर्ति और अपने हित के लिए गुरु को दक्षिणा देनी चाहिए" I

26.2.11

शिर्डी के साईं सन्देश

"जो दक्षिणा देते है, वे उच्च स्थान (यानि स्वर्ग) प्राप्त करते हैं; जो स्वर्ण अर्पण करते हैं, उन्हें उच्चज्ञान (यानि मोक्ष) की प्राप्ति होती है I उसी प्रकार स्वर्ण और दक्षिणा देने से धन कि प्राप्ति होती है" I

25.2.11

शिर्डी के साईं सन्देश

"धन संचय का उद्देश्य यह होना चाहिए कि उसका व्यय दान-धर्म आदि के भले कार्यो में हो I लेकिन, इसकी बजाय उसे केवल तुच्छ शारीरिक अथवा इन्द्रियों के आनंद से सम्बन्धित सुखों के लिये खर्च किया जाता है" I

24.2.11

शिर्डी के साईं सन्देश

"इस जगत में ऐसे असंख्य गुरु शिष्य हैं जो आध्यात्मिक उपदेश देते और लेते हैं I लेकिन वास्तव में ऐसा गुरु बिरला ही होता है,जो उपदेश (ज्ञान) के साथ उसकी अनुभूति भी करवाता है" I

23.2.11

शिर्डी के साईं सन्देश

"महान साधु-संत ऐसे होते हैं, कि जिनकी वाणी से ईशवर स्वयं बोलते हैं I उनके लिए कुछ भी अप्राप्य और अज्ञानता नहीं है" I