31.7.10

संदेश

जब हमारा मुकाबला कठिनाई, खतरों और असफलताओं से हो तब हम अपनी पूरी शक्ति से प्रार्थना करें और अपने कर्मों, विचारों तथा स्वयं में विशवास बनाए रखें
(Swami Paramananda)

30.7.10

श्री साईं सच्चरित्र संदेश,

जो स्वयं को कफनी से ढंकता हो, जिस पर सौ पेबंद  लगे हों, जिसकी गद्दी और बिस्तर बोरे का बना हो; और जिसका ह्रदय सभी प्रकार की भावनाओं से मुक्त हो, उसके लिये चाँदी के सिंहासन की क्या कीमत ?, इस प्रकार का कोई भी सिंहासन तो उनके लिये रुकावट ही होगा I फिर भी अगर भक्तगण पीछे से चुपचाप सरका कर उसे निचे लगा देते थे, तो बाबा उनकी प्रेम और भक्ति देखते हुए, उनकी इच्छा की आदरपूर्ति के लिए मना नहीं करते थे I
"Whose clothing is a patched up kafni; whose seat is sack cloth; whose mind is free of desires. what is a silver throne for him ?, Seeing the devotion of the devotees, he ignored the fact that they. after their difficulties were resolved turned their back on him. "

29.7.10

श्री साईं सच्चरित्र संदेश,

बुरा संग सदैव हानिकारक होता है; वह दुखों और कष्टों का घर होता है, जो बिना बताये तुम्हे कुमार्ग पर लाकर खड़ा कर देता है Iवह सभी सुखों का हरण कर लेता हैं I एसी बुरीसंगति के कारण होने वाली बर्बादी और पाप से साईनाथ या सदगुरु के अलवा और कौन रक्षा कर सकता हैं ?
"Bad company is absolutely harmful. It is the adobe of severe miseries. Unknowingly it would take you to the by-lanes, by-passing the highway of happiness. Without the one and only Sainath or without a Sadguru who else can purify the ill-effects of the bad company."

28.7.10

(श्री मद भागवत गीता सार)

* क्यों व्यर्थ की चिंता करते हो? किससे व्यर्थ डरते हो? कौन तुम्हें मार सकता है? आत्मा ना पैदा होती है, न मरती है।
* जो हुआ, वह अच्छा हुआ, जो हो रहा है, वह अच्छा हो रहा है, जो होगा, वह भी अच्छा ही होगा। तुम भूत का पश्चाताप न करो। भविष्य की चिन्ता न करो। वर्तमान चल रहा है।
* तुम्हारा क्या गया, जो तुम रोते हो? तुम क्या लाए थे, जो तुमने खो दिया? तुमने क्या पैदा किया था, जो नाश हो गया? न तुम कुछ लेकर आए, जो लिया यहीं से लिया। जो दिया, यहीं पर दिया। जो लिया, इसी (भगवान) से लिया। जो दिया, इसी को दिया।
* खाली हाथ आए और खाली हाथ चले। जो आज तुम्हारा है, कल और किसी का था, परसों किसी और का होगा। तुम इसे अपना समझ कर मग्न हो रहे हो। बस यही प्रसन्नता तुम्हारे दु:खों का कारण है।
* परिवर्तन संसार का नियम है। जिसे तुम मृत्यु समझते हो, वही तो जीवन है। एक क्षण में तुम करोड़ों के स्वामी बन जाते हो, दूसरे ही क्षण में तुम दरिद्र हो जाते हो। मेरा-तेरा, छोटा-बड़ा, अपना-पराया, मन से मिटा दो, फिर सब तुम्हारा है, तुम सबके हो।
* न यह शरीर तुम्हारा है, न तुम शरीर के हो। यह अग्नि, जल, वायु, पृथ्वी, आकाश से बना है और इसी में मिल जायेगा। परन्तु आत्मा स्थिर है - फिर तुम क्या हो?
* तुम अपने आपको भगवान के अर्पित करो। यही सबसे उत्तम सहारा है। जो इसके सहारे को जानता है वह भय, चिन्ता, शोक से सर्वदा मुक्त है।
* जो कुछ भी तू करता है, उसे भगवान के अर्पण करता चल। ऐसा करने से सदा जीवन-मुक्त का आनंन्द अनुभव करेगा।

27.7.10

श्री साईं सच्चरित्र संदेश,

"अपनी चातुर्य के सभी तर्क छोड़ कर सदैव "साईं" स्मरण करो, तब तुम देखोगे कि तुम किस प्रकार निर्विघन भव सागर से पार उतर जाओगे ! इस विषय मे कोई संशय मत करना I"
"Abandoning all the million clever and cunning ways, recall always "Sai Sai". You will be able to cross the worldly ocean. Have no doubts"

26.7.10

श्री साईं सच्चरित्र संदेश,

सदगुरु के सानिन्ध्य में रहकर स्वयं को संसार के जंजालो से मुक्त कर लो I इसी मे तुम्हारा कल्याण है I इस विषय मे किसी प्रकार की शंका चित्त में न करो I

"Hold on to the good company of the Guru and the virtuous. Disentangle from the worldly ties. Definitely your fulfillment. Have no doubts."

संदेश

जैसे हम सागर की जितनी गहराई  मे जाएँगे,हम उसकी गहराई  मे छुपे वो  सारे रहस्यों को जानने मे सक्षम होते जाएगें जो उसकी गहराई  मे छुपे हैं, ठीक वैसे  नाम जाप करते हुए अपने अंदर बिराजमान सागर की जितनी गहराई  मे उतरते  जाएगें इस संसार को समझने मे हम उतने ही सक्षम  होते जाएगें, मानस जून हम जीवो की असली मंजिल पाने की सीढ़ी  का आखिरी चरण  है,अगर नाम जाप की कमाई करते रहे तो मंजिल तक पहुँच जाएगें और फिसल गए तो फिर से इस जनम-मरण के चक्कर  मे फंस जाएगें. जीव  को कोशिश करनी चाहिए की वो  नाम जाप करते हुए अपने सतगुरु का ही रूप बन जाए |

25.7.10

श्री साईं सच्चरित्र संदेश,

संत के सानिन्ध्य का महत्त्व अति महान है उससे अहंकार पूर्णत: नष्ट हो जाता है I कोई अन्य साधन सत्संग के समान प्रभावपूर्ण नहीं है I
"Such is the greatness of the Satsang that it completely destroy bodily pride or ego. Therefore there is no other means than Satsang."

23.7.10

‎"डर मत मै तेरे पीछे खड़ा हूँ" : साईं

22.7.10

॥जय श्री कृष्ण

लेना चाहते हो तो आशीर्वाद लो। देना चाहते हो तो अभय दान दो।
खाना चाहते हो तो क्रोध और गम को खाओ।
मारना चाहते हो तो बुरे विचारों को मारो।
जानना चाहते हो तो परमेश्वर को जानो।
जीतना चाहते हो तो तृष्णाओं को जीतो।
पीना चाहते हो तो ईश्वर चिन्तन का शर्बत पीओ।
पहनना चाहते हो तो नेकी का जामा पहनो।
करना चाहते हो तो दीन-दुखियोंकी सहायता करो।
छोड़ना चाहते हो तो झूठ बोलना छोड़ दो।
बोलना चाहते हो तो मीठे वचन बोलो।
तौलना चाहते हो तो अपनी वाणी को तौलो।
देखना चाहते हो तो अपने अवगुणों को देखो।
सुनना चाहते हो तो दुःखियोंकी पुकार सुनो।
पढ़ना चाहते हो तो महापुरुषोंकी जीवनी पढ़ो।
दर्शन करना चाहते हो तो देव दर्शन करो।
चलना चाहते हो तो सन्मार्ग पर चलो।
पहचानना चाहते हो तो अपने आप को पहचानो।

21.7.10

श्री साईं सच्चरित्र संदेश,

"सांसारिक जीवन की सभी भौतिक वस्तुओं अर्पण कर स्वयं को साईं के चरणों मे समर्पित कर दो I तब वे तुम पर कृपा करेंगे I उनकी कृपा प्राप्ति का यह सबसे सरल उपाय हैं I" "The easy way out for the householder is to surrender his mind to the feet of Sai. Then he will bless you."

20.7.10

श्री साईं सच्चरित्र संदेश,

संतो की कथाएं सभी को सदाचार का मार्ग दिखाती हैं; वे सांसारिक जीवन के भय और कष्टों को नष्ट करके, ज्ञान की ज्योति प्रज्ज्वलित करती हैं, जिससे सरलतापूर्वक मुक्ति प्राप्त हो जाती है I
"Stories of the Saints put everyone on the path of righteousness. They remove the worldly fears and miseries and appear themselves for the welfare of the others, in attaining the goal of life."

19.7.10

श्री साईं सच्चरित्र संदेश,

"मन का कार्य विचार करना है I बिना विचार किये वह एक क्षण भी नहीं रह सकता I यदि उसे शारीरिक अथवा इन्द्रियों के आनंद से सम्बंधित सुखों मे लगा दोगे तो वह उन्ही का चिंतन करने लगेगा I यदि उसे गुरु को अर्पण कर दोगे तो वह गुरु के सम्बन्ध में ही चिंतन करता रहेगा I"

"The work of the mind is to think. There is not a single moment when one does not think. If the subject is the senses, the mind will think of the senses, but if it is the guru, it will think of the Guru."

17.7.10

संदेश,

को समझना संसार के सभी रहस्यों को समझने के सामान है |

16.7.10

Sai Say's

"I shall draw out My devotees from the jaws of death."

15.7.10

श्री साईं सच्चरित्र संदेश,

साईं महाराज ही परमानंद और परम शांति के आधार हैं I मैं शुद्ध और अहंकारहित चित्त से और भक्ति भाव के साथ उन्हें प्रणाम करता हूँ I

"Sai Maharaj is the treasure of peace. He is the adobe of pure and heavenly bliss. I prostrate myself to him, who is without ego and who is unsullied (undefiled)."

14.7.10

श्री साईं सच्चरित्र संदेश,

सदैव  स्मरण रखो की भक्तो की भलाई के निमित्त ही संत अवतार लेते हैं; उनकी भावनाएं, उनके सांसारिक कार्यकलाप केवल भक्तो के भले के लिए होते हैं I 

For the sake of devotees he took form. His emotions and passions were also for them. Such is the popular behaviour of the saints. All of you should realise this as the truth.

12.7.10

श्री साईं सच्चरित्र संदेश,

साईं पूर्ण रूप से विरक्त थे, शुद्ध चेतन्य स्वरूप थे, वे परमानंद थे I काम, क्रोध की प्रबल भावनाएं उनके चरणों की शरण लेती थी I वे इच्छारहित और पूर्णत: संतुष्ट थे I

"Baba was not attached. He was the Supreme Being, turned towards his self, whose desire and anger were put to rest, who was free from desires and attachments, and who had completely achieved his mission."

11.7.10

श्री साईं सच्चरित्र संदेश,

"कीर्ति, श्री, वैराग्य, ज्ञान, ऐश्वर्य और उदारता - ये छ: विशेष गुण बाबा में विद्यमान थे

"Sai is the embodiment of the six virtues. He shine with success, wealth, non attachment, intelligence, prosperity and generosity."

10.7.10

श्री साईं सच्चरित्र संदेश,

ईशवर निराकार हैं I वे शिरडी मे साईं रूप मे प्रकट हुए I उन्हें जानने के लिये सर्वप्रथम अहंकार समस्त इच्छाएँ, क्रोध, घ्रणा और कामुक विचारों का नष्ट होना आवश्यक हैं I उन्हें तो केवल प्रेम और भक्ति के द्वारा ही जाना जा सकता है I
"So be it, Because of the devotion of the devotees, the nirakar (that... which is without form) has manifested in Shirdi in the form of Sai. He who has abandoned bodily ego and who has no passions understand him through devotion."

9.7.10

श्री साईं सच्चरित्र संदेश,

"भिन्न भिन्न प्रकार की सांसारिक शिक्षाएं (भोतिक, विज्ञानं, कला) प्रदान करने वाले गुरु अनेक प्रकार के होते हैं I लेकिन सदगुरु केवल वही होता है,जो आत्मज्ञान की प्राप्ति करवा दे I यथार्थ में जो हमे अत्मिस्थित बनाकर इस भवसागर से पार उतार दे, वह सर्वशक्तिमान ही सदगुरु है I वास्तव मे उनकी महिमा अप...रम्पार हैं !
"There are many teachers available for physical science. But he who brings his student to realise his own nature is the Sadguru. He is the real, the great one who can take you across the worldly ocean. His greatness is imperceptible."

8.7.10

श्री साईं सच्चरित्र संदेश,

वे किसी से किसी प्रकार की इच्छा नहीं रखते थे; बल्कि सभी साथ एक जैसा व्यवहार करते थे; यहाँ तक की क्रत्धन (अहसान को न मानने वाले) पर भी वे अपनी कृपा की वर्षा बरसाते थे I

He is without expectations and regards everything equally, showers nectar of blessing even on those who have done harm to him. His mind remains unperturbed in good times or bad times. He entertains no doubt.

7.7.10

श्री साईं सच्चरित्र संदेश,

साईं समस्त प्राणियों मे ब्रह्म या स्वयं ईशवर का दर्शन किया करते थे; मित्र और शत्रु को एक नज़र से देख, उनमे भेदभाव नहीं करते थे I

"He who look at everything and at all creatures as Brahman itself, who looks upon friends and foes with equality and who does not discriminate the least,"

Rare Photos: Making Of Shirdi Sai Baba's Idol for Calgary`Canada

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6.7.10

संदेश

दुःख में चीखना चिल्लाना प्रभु के विधान में असंतोष व्यक्त करना है ! भक्त्ति मार्ग में स्थित भक्त्त तो प्रत्येक स्थिति में प्रभु इच्छा मान कर संतुष्ट रहता है !

प्रभु से कभी कुछ मांगो मत !

5.7.10

श्री साईं सच्चरित्र संदेश,

जिसकी भावना हो की "में ब्रह्म हूँ " जो अखंड आनंद की मूर्ति हो, जो निविर्कल्प चित्त स्थिति को प्राप्त कर चुका हो, ऐसे व्यक्ति मे संन्यास और आत्मत्याग की भावना शरण ले लेती है I

His whole nature is one with Brahman. He is the embodiment of permanent bliss; his mind is without any doubts. He is the incarnation of resignation (denial of pleasures).

4.7.10

श्री साईं सच्चरित्र संदेश

जो सांसारिक जीवन के दुखों - सुखों को मिथ्या मानता है और जिसने आत्मतलीन होकर इनके स्वप्न-भ्रम को दूर हटा लिया हो, वह मुक्ति प्राप्त कर लेता है I

3.7.10

श्री साईं सच्चरित्र संदेश

बाबा कहते है, "जिस प्रकार जागने पर स्वपन के राज्य का वेभव अद्रश्य हो जाता है, उसी प्रकार सांसारिक जीवन की मिथ्या विशेषता भी अद्रश्य हो जाएगी" I

"Just as the grandeur of the kingdom of dreams turns into nothingness as soon as the person awakens; similarly, this world is just an illusion. This is his conviction."

2.7.10

श्री साईं सच्चरित्र संदेश

'अगर कोई तुम्हारी निंदा करे या तुम्हे नुकसान पहुँचाये, तो तुम प्रतिकार न करो; बल्कि मोका आने पर उसकी भलाई करो I' यही बाबा के उपदेश का सार है I " If anyone harm you in anyway, you should not retaliate, if possible try to oblige others". This is the sum total of his teaching.

1.7.10

संदेश

“Give food to the hungry, water to the thirsty, and clothes to the naked. Then God will be pleased.”