31.12.10
श्री साईं सच्चरित्र संदेश,
"जो बाबा को नमन कर अनन्य भाव से उनकी शरण जाता है, उसे फिर कोई साधना करने कि आवश्यकता नहीं है I धर्म, अर्थ, काम, और मोक्ष उसे सहज ही प्राप्त हो जाते हैं I"
30.12.10
श्री साईं सच्चरित्र संदेश,
"तुम्हें अपने शुभ अशुभ कर्मो का फल अवश्य ही भोगना चाहिए I यदि भोग अपूर्ण रह गया तो पुनजन्म धारण करना पड़ेगा, इसलिये मृत्यु से यह श्रेयस्कर है कि कुछ काल तक उन्हें सहन कर पूर्व जन्मों के कर्मों का भोग समाप्त कर सदेव के लिये मुक्त हो जाओ" I
26.12.10
श्री साईं सच्चरित्र संदेश,
"पूर्व जन्मों में संचित आनंद पुण्य कर्मो के बल से अनायास ही जीव को इस नरदेह की प्राप्ति होती है I इसके अलावा जब वह आध्यात्मिक उन्नति भी करता है तो वह उसका सौभाग्य होता है" I
25.12.10
श्री साईं सच्चरित्र संदेश,
"बाबा लीलावतार थे जो दिनोद्वार, दुष्ट निशाचरों के वध और भक्तो की दुर्वासनाओ को नष्ट करने के लिए प्रकट हुए थे"I
24.12.10
23.12.10
22.12.10
श्री साईं सच्चरित्र संदेश,
साईं नाथ जी को और क्या चाहिए
केवल दो हाथ, एक माथा,दृढ़ श्रद्धा और अनन्य भक्ति,
भगत की कृतज्ञता ही उनके लिए पर्याप्त है |
एक विचार
जब दुर्भाग्य हों तो चमड़ी मोटी रखो ! सुनो सब की , मगर जबान पर नियंत्रण रखो और मजाक उड़ाने वालो को ज्यादा तवाजो मत दो ! सोचो यह समय भी गुजर जाएगा अच्छे दिन आ कर चले गए तो बुरे दिन भी चले जायेगे !
21.12.10
SHIRI SAI 108 NAM JAP
- OM sri Sai Nathaaya namaha
20.12.10
श्री साईं सच्चरित्र संदेश,
"केवल संतो का प्रेमावलोकन, संतप्रसाद और उनके आशीर्वचन ही समस्त व्याधियों को हर सकते हैं, इनके अलावा अन्य किसी भी आवश्यकता नहीं पड़तीं"I
19.12.10
माँ-बाप को भूलना नहीं||
माँ-बाप को भूलना नहीं||
भूलो सभी को मगर, माँ-बाप को भूलना नहीं।
उपकार अगणित हैं उनके, इस बात को भूलना नहीं।।
पत्थर पूजे कई तुम्हारे, जन्म के खातिर अरे।
पत्थर बन माँ-बाप का, दिल कभी कुचलना नहीं।।
मुख का निवाला दे अरे, जिनने तुम्हें बड़ा किया।
अमृत पिलाया तुमको जहर, उनको उगलना नहीं।।
कितने लड़ाए लाड़ सब, अरमान भी पूरे किये।
पूरे करो अरमान उनके, बात यह भूलना नहीं।।
लाखों कमाते हो भले, माँ-बाप से ज्यादा नहीं।
सेवा बिना सब राख है, मद में कभी फूलना नहीं।।
सन्तान से सेवा चाहो, सन्तान बन सेवा करो।
जैसी करनी वैसी भरनी, न्याय यह भूलना नहीं।।
सोकर स्वयं गीले में, सुलाया तुम्हें सूखी जगह।
माँ की अमीमय आँखों को, भूलकर कभी भिगोना नहीं।।
जिसने बिछाये फूल थे, हर दम तुम्हारी राहों में।
उस राहबर के राह के, कंटक कभी बनना नहीं।।
धन तो मिल जायेगा मगर, माँ-बाप क्या मिल पायेंगे ?
भूलो सभी को मगर, माँ-बाप को भूलना नहीं।
उपकार अगणित हैं उनके, इस बात को भूलना नहीं।।
पत्थर पूजे कई तुम्हारे, जन्म के खातिर अरे।
पत्थर बन माँ-बाप का, दिल कभी कुचलना नहीं।।
मुख का निवाला दे अरे, जिनने तुम्हें बड़ा किया।
अमृत पिलाया तुमको जहर, उनको उगलना नहीं।।
कितने लड़ाए लाड़ सब, अरमान भी पूरे किये।
पूरे करो अरमान उनके, बात यह भूलना नहीं।।
लाखों कमाते हो भले, माँ-बाप से ज्यादा नहीं।
सेवा बिना सब राख है, मद में कभी फूलना नहीं।।
सन्तान से सेवा चाहो, सन्तान बन सेवा करो।
जैसी करनी वैसी भरनी, न्याय यह भूलना नहीं।।
सोकर स्वयं गीले में, सुलाया तुम्हें सूखी जगह।
माँ की अमीमय आँखों को, भूलकर कभी भिगोना नहीं।।
जिसने बिछाये फूल थे, हर दम तुम्हारी राहों में।
उस राहबर के राह के, कंटक कभी बनना नहीं।।
धन तो मिल जायेगा मगर, माँ-बाप क्या मिल पायेंगे ?
18.12.10
श्री साईं सच्चरित्र संदेश,
केवल कर्मो को भोगने पर ही उनका अंत होगा I जन्म जन्मांतर यह पुर्णतः निशिचत हैं I जब तक हम अपने कर्मो को न भोग ले तब तक अन्य कोई उपाय निव्रत्तिदायक नहीं हैI
17.12.10
Swami Sivananda
Refrain from injury to all creatures in
thought, word and deed. Be kind and
charitable. Free yourself from anger, hatred
and malice. Happiness results from good acts.
Everything can be attained by righteousness.
अपने विचारों, शब्दों या कार्य से किसी भी प्राणिमात्र को
पीड़ित करने से बचे। उदार और दयालु बनो| स्वयं कों क्रोध, ईर्ष्या और घृणा से दूर रखो| अच्छे कार्यों से ही खुशी मिलती है, सही तरीके से सब कुछ प्राप्त किया जा सकता है।
thought, word and deed. Be kind and
charitable. Free yourself from anger, hatred
and malice. Happiness results from good acts.
Everything can be attained by righteousness.
अपने विचारों, शब्दों या कार्य से किसी भी प्राणिमात्र को
पीड़ित करने से बचे। उदार और दयालु बनो| स्वयं कों क्रोध, ईर्ष्या और घृणा से दूर रखो| अच्छे कार्यों से ही खुशी मिलती है, सही तरीके से सब कुछ प्राप्त किया जा सकता है।
16.12.10
श्री साईं सच्चरित्र संदेश,
"व्याधि (रोग) अपने साथ भयंकर पीड़ा और कष्ट लाता है, परन्तु संत अपनी करुण द्रष्टि से बिना दुःख और कष्ट भोगे, रोग को नष्ट कर देते हैं"I
15.12.10
Sri Paramahansa Yogananda
Never try to deceive others. A fake rose can
never be a real rose. And a real rose will shed
its fragrance no matter how much it is crushed.
If you egoistically display yourself before others,
the world will eventually cast you aside. And don’t
try in any way to deceive God, for in the false notion
that you can fool Him you only deceive yourself.
दूसरों को धोखा देने की कोशिश ना करें| एक नकली गुलाब
कभी असली नहीं हो सकता और असली गुलाब कितना भी
कुचला जाए वह खुशबू ही देता है। यदि आप दूसरों के सामने स्वयं को अभिमान पूर्वक प्रदर्शित करते है तो लोग आपको परे कर देते है| और किसी भी तरह से भगवान को धोखा देने की कोशिश ना करे| जब आप ऐसा सोचते है कि आप उसे बेवकूफ बना सकते है तो आप केवल अपने को धोखा देते हैं|
never be a real rose. And a real rose will shed
its fragrance no matter how much it is crushed.
If you egoistically display yourself before others,
the world will eventually cast you aside. And don’t
try in any way to deceive God, for in the false notion
that you can fool Him you only deceive yourself.
दूसरों को धोखा देने की कोशिश ना करें| एक नकली गुलाब
कभी असली नहीं हो सकता और असली गुलाब कितना भी
कुचला जाए वह खुशबू ही देता है। यदि आप दूसरों के सामने स्वयं को अभिमान पूर्वक प्रदर्शित करते है तो लोग आपको परे कर देते है| और किसी भी तरह से भगवान को धोखा देने की कोशिश ना करे| जब आप ऐसा सोचते है कि आप उसे बेवकूफ बना सकते है तो आप केवल अपने को धोखा देते हैं|
14.12.10
Guru Nanaka
प्रत्येक व्यक्ति को भगवद-भजन और मानवता की सेवा से अपने ह्रदय को शुद्ध करना चाहिए, ईश्वर की इच्छा के अनुरूप बिना भुनभुनाए अपने जीवन को जीना चाहिए| उसकी इच्छा को ही अपनी इच्छा माने| असीम के साथ तादात्म्य बनाए रखे| इसके अतिरिक्त और कोई रास्ता नहीं है|
13.12.10
ॐ साईं राम,
"साईं की लीला सुने,कर साईं का ध्यान,
भगति सद्गुरु साईं की,त्याग सकल अभिमान"
"साईं राम मेरा सत्य गुरु"
11.12.10
Sri Paramahansa Yogananda
किसी भी परिस्थिति में दूसरों को यह मौक़ा न दें कि वह आपको इतना क्रोधित कर सके कि आप कुछ ऐसा कर बैठें कि बाद में पश्चाताप करना पड़े। बहुत से लोग जो क्रोध में अपना नियंत्रण खो बैठते है वे बाद में पछताते हैं कि उन्होंने क्या कर दिया| जो व्यक्ति अपने संवेगों पर नियंत्रण नहीं रख पाते, वे स्वयं के सबसे बड़े शत्रु हैं| जब आपको कोई पागल (क्रोधित) कर देता है इसका अर्थ यह है कि आपके अंदर की कोई ईच्छा अवरोधित हो रही है, अन्यथा कोई भी आपको क्रोधित नहीं कर सकता|
10.12.10
श्री साईं सच्चरित्र संदेश,
वे (साईं बाबा ) न तो किसी जानवर की बलि चाहते थे और न ही चढ़ावे में धन की कामना करते थे I उन्हें तो सच्चे प्रेम, श्रद्धा और विशवास की भूख थी, जिसके होने पर उनके सभी कष्ट नष्ट हो सकते थे I
9.12.10
श्री साईं सच्चरित्र संदेश,
"मूर्ति, वेदी, अग्नि, प्रकाश, सूर्य, जल और द्विज (ब्रह्मण) आदि सप्त पवित्र उपासना की वस्तुएं होते हुए भी गुरु की उपासना ही इन सभी में श्रेष्ट है,इसलिए अनन्य भाव से उनका पूजन करें"I
7.12.10
साईं जो को सप्रेम विनती
बिना ज्ञान के पुजू कैसे , बिना अश्रुदल धोऊ कैसे
आनंदित दर्शन को तरसे ,नयन हलहल श्रधा जल से
श्री चरणों से बिछड़ी आत्मा आस मिलन की है परमात्मा
भटकी है अब रह दिखा दो,ह्रदय द्वार पर दीप जला दो,
श्री चरणों मे लगन लगा दो, सदबुधी वैराग्य दिला दो,
चरण धोऊ नित अश्रुदल से मन मे ऐसे भक्ति जगा दो,
साईं चरणों मे हमें बिठा लो,शरणागत को गले लगा लो
हे साईं देवा दासी को अपने चरणों मे
जगह दो ..
dimple
आनंदित दर्शन को तरसे ,नयन हलहल श्रधा जल से
श्री चरणों से बिछड़ी आत्मा आस मिलन की है परमात्मा
भटकी है अब रह दिखा दो,ह्रदय द्वार पर दीप जला दो,
श्री चरणों मे लगन लगा दो, सदबुधी वैराग्य दिला दो,
चरण धोऊ नित अश्रुदल से मन मे ऐसे भक्ति जगा दो,
साईं चरणों मे हमें बिठा लो,शरणागत को गले लगा लो
हे साईं देवा दासी को अपने चरणों मे
जगह दो ..
dimple
6.12.10
Sai Bhajan Kirtan & Jugalbandi 11 December'2010
You are cordialy invited on
13th annversary of Paracheen Sai Dham Mandir
on dated 11 December'2010, 4:00 PM onwards
at Sirifort Auditorium.
Bhandara 10:00 PM.
(Bhandara Vitarn by Shirdi Sai Rasoi)
All Shree Sai Devotees with family and friends are
requested to be a part of our grand success and get blessed by
"Shree Sai Baba ji"
4.12.10
ॐ सांई राम
ॐ सांई राम
आओ आओ साईंनाथ
आओ आओ हे जगन्नाथ
आओ आओ साईंनाथ
दर्शन के लिए तरस रहे है
नयन हमारे ओ साईं
दर्ष दिखाओ दया के सागर
आओ शंकर हे परमेश्वर
Please come, Sai, Lord of the Universe, our eyes are eager to see Your divine form. O Lord Shankara, the ocean of compassion, grant us Your vision.
आओ आओ साईंनाथ
आओ आओ साईं प्यारे
कीर्तन करू मैं साईं तुम्हारे
आओ आओ साईं प्यारे
तुम हो मेरे नयनो के तारे
दर्शन दो जीवन के सहारे
Please come, beloved Sai, let me sing your glory.
O Supreme Lord, You are the support of my life and the
shining star of my eyes.
कीर्तन करू मैं साईं तुम्हारे
आओ आओ साईं प्यारे
तुम हो मेरे नयनो के तारे
दर्शन दो जीवन के सहारे
Please come, beloved Sai, let me sing your glory.
O Supreme Lord, You are the support of my life and the
shining star of my eyes.
आओ गोपाला गिरिधारी
आओ आओ अंतर्यामी
आओ आओ आनंदा साईं
आओ गोपाला गिरिधारी
आओ आओ आत्मानिवासी
आओ आओ शांति निवासी
Come, O Gopala! You held up the mountain Govardhana
to save Your devotees. We welcome You the indweller of our
hearts. Lord Sai, You reside in the abode of peace and grant bliss.
आओ प्यारे नयन हमारे
साईं हमारे आओ
तुम बिन कोई नहीं रखवाले
तुम बिन कौन सहारे (बाबा)
आओ साईं प्यारे
साईं हमारे आओ
Please come our beloved Lord Sai! You are as precious
as our eyes. Without You, there is no one to
protect us. Who but You can support us, O Beloved Sai?
तुम बिन कोई नहीं रखवाले
तुम बिन कौन सहारे (बाबा)
आओ साईं प्यारे
साईं हमारे आओ
Please come our beloved Lord Sai! You are as precious
as our eyes. Without You, there is no one to
protect us. Who but You can support us, O Beloved Sai?
आओ साईं नारायण दर्शन दीजो
तुम हो जगत विधाता
तुम्ही हो ब्रह्मा तुम्ही हो विष्णु
तुम्ही हो शंकर रूप
तुम्ही हो राम तुम्ही हो कृष्ण
तुम्ही हो विश्व विधाता
Welcome Sai Narayana, Creator of the Universe.
Grant us your Darshan. You are none other than Lord Rama,
Krishna, Vishnu, Brahma and Shankara.
तुम हो जगत विधाता
तुम्ही हो ब्रह्मा तुम्ही हो विष्णु
तुम्ही हो शंकर रूप
तुम्ही हो राम तुम्ही हो कृष्ण
तुम्ही हो विश्व विधाता
Welcome Sai Narayana, Creator of the Universe.
Grant us your Darshan. You are none other than Lord Rama,
Krishna, Vishnu, Brahma and Shankara.
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श्री साईं सच्चरित्र संदेश,
"गुरु के शब्दों मे विशवास कर उन्हें सर्वसंकल्प का आसन अर्पण करें और उनके पूजन का संकल्प करके समस्त इच्छाओं का त्याग करें"I
1.12.10
श्री साईं सच्चरित्र संदेश,
"साईं समस्त प्राणियों मे ब्रह्म या स्वयं ईशवर का दर्शन किया करते थे,मित्र और शत्रु को एक नज़र से देख, उनमे भेदभाव नहीं करते थे" I
29.11.10
श्री साईं सच्चरित्र संदेश,
"रोग और स्वास्थ्य क्या है ? जब तक व्यक्ति के पाप और पुण्य का अंत न हो, या जब तक वह अपने कर्मो को न भोग ले, तब तक कोई अन्य उपाय काम में नहीं आता I"
28.11.10
श्री साईं सच्चरित्र संदेश,
"जीव स्वत्रंत नहीं है,कर्मो की कड़ी उसका पीछा करती है, कर्मो का खेल भी विचित्र है, जो प्राणी के जीवन को धागों से खीचते है I"
27.11.10
Swami Sivananda
जिनका ह्रदय पवित्र है, वे भाग्यशाली हैं, क्योंकि उन्हें भगवत्प्राप्ति होगी। ईश्वर आपके ह्रदय में विराजमान है लेकिन दुर्भाव का पर्दा ईश्वर को आपकी द्रष्टि से दूर कर देता है| आप इस पर्दे को दूर करने का प्रयास करे| अपने ह्रदय से इस दुर्भाव को दूर कर दें| और तब तुम अभी और यहीं ईश्वर को पूरे प्रकाश और प्रभाव के साथ अनुभव कर पाओगे| वे भाग्यशाली हैं जिन्हें ईश्वरीय द्रष्टि प्राप्त है, वे ईश्वर-किरपा को सम्पूर्ण विश्व में प्रसारित कर देंगे|
26.11.10
Sri Paramahansa Yogananda
"जो व्यक्ति हमेशा दूसरों में दोष देखता है सामान्यत: उसका अपने विषय में कोई उच्च भाव नहीं होता| ऐसे व्यक्ति अपने अंदर स्थित समरसता केंद्र से अनजान होते हैं| कोई आश्चर्य नहीं ऐसे व्यक्ति जहां भी जाते हैं केवल विसंगतियाँ ही देखते हैं| धन-संपत्ति और अन्य पदार्थों में कोई सुख नहीं है जब तक आपके मस्तिष्क में शान्ति और समरसता ना हो| जिसके अपने ह्रदय में शान्ति नहीं उसे अन्य किसी जगह शान्ति नहीं मिल सकती|"
25.11.10
श्री साईं सच्चरित्र संदेश,
"अपने ध्येय की प्राप्ति के लिए भूतकाल के घटनाक्रम तथा आने वाली परिस्थिती का ख्याल कर कार्य करते रहो; विधि के विधान के अनुरूप आचरण करो I नित्य संतुष्ट रहो I कभी भी चिन्ता और व्याकुलता को अपने मे पनपने न दो I"
24.11.10
Sri Paramahansa Yogananda
जब आप अपनी खुशी के बारे में सोचते हैं, दूसरों को खुशियां देने के विषय में भी सोचें| इसका अर्थ यह नहीं है कि आप् संसार के लिए सब कुछ छोड दें| यह असंभव है|लेकिन तुम्हें दूसरों के लिए सोचना अवश्य चाहिए|
23.11.10
22.11.10
श्री साईं सच्चरित्र संदेश,
जहाँ स्नेहपूर्ण प्रेमभक्ति होती है, जहाँ बाबा के साथ प्रेमपूर्ण लगाव होता है, यथार्थ मे केवल वही प्रेम की तीव्र इच्छा प्रकट होती है I वास्तव मे केवल वहीँ उनकी कथाओं के श्रवण से प्राप्त होने वाले परमानंद को देखा जा सकता है I
21.11.10
18.11.10
श्री साईं सच्चरित्र संदेश,
"जिसने अपनी बुद्धि ब्रह्म मे स्थिर कर ली हो, उसे स्वत: ही साक्षात्कार का अनुभव हो जाता है I ऐसे महात्मा केवल अपनी दृष्टी की शक्ति से ही उन पापों पर विजय प्राप्त कर लेते है, जिन्हें जीत पाना असंभव होता है I"
16.11.10
श्री साईं सच्चरित्र संदेश,
महान योगियों के केवल दृष्टीपात से नास्तिक तक पापमुक्त हो जाते हैं ; तो फिर आस्तिकों के क्या कहने ? उनके पाप तो सहज ही नष्ट हो जाते हैं I
15.11.10
साईं वचन
"जो मुझमें श्रद्धा ला कर मेरा चिन्तन करता हैं , उसके समस्त कार्य तो मैं करता ही हूँ -- मैं उसे मोक्ष भी प्रदान करता हूँ"
11.11.10
श्री साईं सच्चरित्र संदेश,
साईं के दर्शन मात्र का ऐसा प्रताप है कि वह हमें हमारे पापों से मुक्त कर देते हैं, जिससे हमें इस जीवन मे और आगे इस संसार के उच्चतम सुखों कि भरपूर मात्रा मे प्राप्ति हो जाती है I
10.11.10
श्री साईं सच्चरित्र संदेश,
ॐ साईं राम,
"मधुर कथा साईं कहे, शिक्षा हम पा जाएँ,
"मधुर कथा साईं कहे, शिक्षा हम पा जाएँ,
जैसा भी जो बोयेगा, वही काटता जाए,
साईं जी अपनी कृपा दृष्टि रखना जी
8.11.10
श्री साईं सच्चरित्र संदेश,
"चाहे किसी का कोई भी गुरु हो, व्यक्ति को अपने गुरु मे दृढ़ विशवास होना चाहिए I उसे किसी दुसरे मे ऐसा विशवास नहीं रखना चाहिए I इस शिक्षा को हमे अपने ह्रदय मे दृढ़ता से बसा लेना चाहिए I"
2.11.10
1.11.10
श्री साईं सच्चरित्र संदेश,
इस सर्वमान्य सिध्दांत के अनुसार संत वचन कभी भी नि:सार नहीं होते I उनका ध्यान पूर्वक मनन करने पर उनसे गहन व महत्वपूर्ण विषय प्रकाशित होते हैं I
30.10.10
SANDESH
हमेशा अपने चेहरे पर मुसकराहट बनाये रखे भले ही हमें ऐसा प्रयत्न पूर्वक् करना पडे़। हम इसे कैसे भी शुरु करें।आप उस गुण को अपने अन्दर मान ले जो आप में नही है।यदि कोई अच्छी आदत है जिसे आप विकसित करना चाहते हैं,ऐसी क्रिया कीजिये जैसे वह गुण आपके अन्दर है। धीरे-धीरे यह वास्तविकता हो जायेगी ।यहां तक कि यदि आपको मुसकराना पसन्द नही है फिर भी किसी तरह से मुसकरायें और आप स्वत: ही आनन्दित महसूस करेंगे।
29.10.10
28.10.10
Swami Sivananda
यदि तुम सोचते हो कि तुम दूसरों से श्रेष्ठ हो, तुम उनके साथ घृणात्मक व्यवहार करना शुरु कर दोगे। श्रेष्ठता और हीनता अज्ञान की उपज है। समान दृष्टि विकसित करो। जब आप एक को ही सब जगह देखते हो तब श्रेष्टता और हीनता कहां है? अपने दृष्टिकोण को और मानसिक अभिवृत्ति को बदलो और शांति पूर्वक रहो।
27.10.10
श्री साईं सच्चरित्र संदेश,
संतो का नित्य व्यवहार इस प्रकार होता है - वे पहले विचार करते हैं और फिर उच्चारण करते हैं I संतो के उच्चारण को आदर सहित आचार मे लाया जाता है I
26.10.10
Swami Sivananda
असावधानी और विस्मरण् ये दो ऐसे बुरे गुण हैं जो मनुष्य की सफलता के रास्ते मे खड़े रहते हैं। एक लापरवाह व्यक्ति किसी भी कार्य को साफ और सही तरीके से नहीं कर सकता। असावधान व्यक्ति लगकर किसी कार्य को करने का ज्ञान नही रखता।उसमें ध्यान की एकाग्रता नही होती। तुम्हें इन बुराईयों को दूर करने के लिये एक दृढ इच्छा शक्ति को विकसित करना होगा।इन बुराईयों के विपरीत गुणों को विकसित करना होगा।
22.10.10
श्री साईं सच्चरित्र संदेश,
संतो के शब्द कभी भी अर्थहीन नहीं होते I वे तो सदेव महत्वपूर्ण ही होते है I उनका सही मोल कौन जाँच सकता हैं
21.10.10
श्री साईं सच्चरित्र संदेश,
संत तो अपनी निर्गुण निराकार स्थिति को त्याग कर केवल भक्तो के उपकार के लिए, उन्हें जन्म मरण के चक्र से मुक्ति दिलाने के लिए ही अवतार लेते हैं I
20.10.10
श्री साईं सच्चरित्र संदेश,
उन्हें भूत, भविष्य और वर्तमान का स्पष्ट ज्ञान होता है, मानो वह उनके हाथ के तेल में रखे कमल के समान हो I जब भक्त उनकी आज्ञा का पालन करते हैं तो उन्हें सुख और शांति कि प्राप्ति होती है I
19.10.10
Sri Paramahansa Yogananda
समृद्धि के नियम को मनुष्य द्वारा स्वयं अपने लाभ के लिए ही तोड़ा मरोड़ा नहीं जा सकता जब तक दूसरों के सुख को अपनी समृद्धि में समाहित नहीं कर लेते तुम आदर्श रूप में कभी समृद्ध नहीं हो पाओगे अपने आप को इस बात की लिए प्रेरित करो कि आपके कार्यऔर योजनाओं से दूसरों को लाभ कैसे मिल सकता है
14.10.10
श्री साईं सच्चरित्र संदेश,
संक्षेप मे हम योजनाएँ बनाते हैं ; लेकिन हम यदि अंत के विषय मे कुछ नहीं जानते ; यानि पहले क्या हुआ था और बाद में क्या होने वाला है I लेकिन केवल संत ही जानते है, कि हमारे लिए क्या अच्छा है और क्या बुरा है ; क्योकि ऐसा कुछ भी नहीं है, जिसे वे नहीं जानते हों I
11.10.10
Sri Paramahansa Yogananda
प्रत्येक गलत कार्य व्यक्ति के स्वयं के विरोध में जाता है इससे शान्ति और खुशी नहीं मिलती कभी-कभी अच्छा बनना कठिन लगता है जबकि बुरा बनना बहुत आसान; और बुरी आदतों को छोड़कर ऐसा लगता है कि हमसे कुछ छूट गया है ऐसी बातों से बचो यह निश्चित रूप से आपके लिए हानिकारक है उन कार्यों को चुनो जिससे आपको खुशी और स्वतंत्रता मिले सदव्यवहार और सदाचार को विकसित करो जो तुम्हें स्वतंत्रता की ओर ले जाता है
10.10.10
Swami Sivananda
भटके हुए लोगों के लिए दीपक बनो,बीमारऔर रोगियों के लिए डाक्टर और नर्स बनो,जो निर्भयता और अमरत्व के दूसरे छोर परजाने के इच्छुक हैं
उनके लिए नाव और पुल बनो |
उनके लिए नाव और पुल बनो |
9.10.10
श्री साईं सच्चरित्र संदेश,
संतो मे विशवास करने से अज्ञानियों कि अज्ञानता का अंत होगा और जो ज्ञानी अपने ज्ञान पर गर्व करते है, उनकी शंकाए और अटकले भी दूर हो जाएँगी फलत: उनके ह्रदय मे भी उत्तम विचार और भावनाएँ जाग्रत होगी I
8.10.10
श्री साईं सच्चरित्र संदेश,
संत तो करुणा के कारण द्रवित होकर अज्ञानियों को भी अपनी शरण मे लेते हैं: ताकि उस क्षण उनमे विशवास जाग्रत हो जाए I लेकिन अभिमानी और घमंडी बनकर ज्ञान प्राप्त करना निष्फल होता है I
3.10.10
2.10.10
Shirdi ke श्री साईं सच्चरित्र संदेश,
"ईशवर ऐसे अज्ञानी, निष्कपटी प्राणियों पर भी अपनी करुणा, दया और कृपा करते हैं,लेकिन जो ईशवर से विमुख होकर उनसे दूर भागते हैं, वे अपने ही अहंकार मे भस्म हो जाते हैं" I
30.9.10
Shri Krishna Bhagavad Gita
One who has control over the mind is tranquil in heat and cold, in pleasure and pain, and in honor and dishonor; and is ever steadfast with the Supreme Self.
28.9.10
Shirdi ke श्री साईं सच्चरित्र संदेश,
"संत अपने भक्तो की भक्ति के लिए प्रेमवश उनके कल्याण के लिए अपना दिव्य गुणसमूह पुर्णतः उपयोग किया करते है I जब संत अपने भक्तो की सहायता के लिए दौड़ते हैं, तो पर्वत घाटी जैसी बड़ी से बड़ी रूकावट को पार करना उनके लिए कठिन नहीं होता" I
26.9.10
Sai Moksh ki Rah
"नव-नाथो की भक्ति जब तुझको कठिन दिखे,
तु साईँ की भक्ति से राह मोक्ष की पाए "।साईँ कृपा हम सब पर बनी रहे।
25.9.10
Sai Ki Sharan
"चाहे स्वीकार करे या अस्वीकार करे,सो तो होकर ही रहेगा,केवल साईँ की शरण ही हमेँ सुखो और दुःखो से परे ले जा सकती है"।
22.9.10
संदेश,
"तुम्हें अपने कर्तव्य को बहुत कुशलता से पूरा करना चाहिए तुम जो भी कार्य करो उसे विधिवत और दक्षता से करो अहंकार को त्याग दो और अपने कर्तव्य को सम्मान, पैसा और प्रशंसा के लिए नही वरन अपनी आतंरिक इंद्रियों को शुद्ध करने के लिए करो ताकि भगवदभक्ति का विकास हो सके |
21.9.10
Shirdi ke Sai ji se Vinti
जय जय सतगुरु साईनाथ ! मैं आपके चरणों में नमन करने के लिए अपना माथा टेकता हूँ I आप निर्विकार और अखण्डस्वरूप हैं I उन पर कृपा करो जो (यानि में) आपके शरणागत होते हैं I
20.9.10
श्री साईं सच्चरित्र संदेश,
चाहे कितनी ही कठोर और पीड़ायुक्त परीक्षा क्यों न हो, भक्त को कभी भी अपने गुरु-देव को नहीं छोड़ना चाहिए - साईं ने भक्तो को प्रत्यक्ष अनुभव देकर इसकी सत्यता को प्रमाणित किया और उनके गुरु के प्रति उनके विशवास को दृढ़ किया I
19.9.10
Sri Paramahansa Yogananda
जिस प्रकार दहकते कोयले की लालिमा से अग्नि का भान होता है, उसी प्रकार शरीर की सुन्दर कार्यशैली से आत्मा की उपस्थिति का भान होता है |
17.9.10
Swami Ramsukhdas:
किसी के लिये कुछ करके यदि आपको अभिमान होता है कि आपने दूसरों के लिये कुछ अच्छा किया है तो यह आपकी गलती है। क्योंकि जो भी योग्यता, कला, ज्ञान आपके पास है वह समाज से ही आपको प्राप्त हुआ है। यदि तुम इसका प्रयोग समाज के लिये करते हो तो यह कोई महान कार्य नहीं है। यदि आपको इस बात का अभिमान है तो आपमे अहंकार विकसित हो रहा है और यह आपको मेरेपन की ओर ले जाता है।
(Swami Ramsukhdas)
(Swami Ramsukhdas)
16.9.10
Shirdi Sai Sandesh
"साईं संतो में महान हैं I वे ईश्वर के अवतार हैं I जो पूर्ण समर्पण कर उनके सामने नतमस्तक हो जाएगा, वे उस पर अवश्य कृपा करेंगें I"
15.9.10
Shirdi Sai Sandesh
"ब्रह्म के दो स्वरूप - निर्गुण और सगुण I निर्गुण निराकार है और सगुण साकार है I क्योंकि वे एक ही ब्रह्म के दो रूप हैं, इसलिए परस्पर भिन्न नहीं हैं I"
14.9.10
Sri Paramahansa Yogananda:
जो व्यक्ति अच्छे भाव रखता है और अच्छे विचारों के विषय में सोचता है वह प्रकृति और जनसामान्य में केवल अच्छाई देखेगा, तुम्हें अच्छे कार्यों को ही यादरखने के लिए स्मरण शक्ति दी गई है,उन अच्छीबातों को उस समय तक याद करो जब तक कि तुम सर्वोच्च अच्छाई - ईश्वर को याद न कर लो |
A person who feels good emotions, and thinks good thoughts, and sees only good in nature and people, will remember only good.Memory was given to you to practice the recollection of good things until you can fully remember the highest Good, God.
(Sri Paramahansa Yogananda)
A person who feels good emotions, and thinks good thoughts, and sees only good in nature and people, will remember only good.Memory was given to you to practice the recollection of good things until you can fully remember the highest Good, God.
(Sri Paramahansa Yogananda)
13.9.10
साईं दया की ....
"साईं ऐसी दया की मूर्ति हैं! उनका अपने भक्तों के प्रति वैसा ही स्नेह है, जैसा कि माँ का अपने नन्हे शिशु के प्रति होता है!"
12.9.10
श्री साईं सच्चरित्र संदेश,
"देवताओं को भक्तो, साधु और संत अपने जीवन से अधिक प्रिय होते हैं और उन्ही की इच्छानुसार वे कार्य करते हैं I उनके लिए देवता धरती पर प्रकट होते हैं I" Gods love their devotees and their Saints and Sages more than themselves. Gods heeds their words and take human birth for their sake.
11.9.10
श्री साईं सच्चरित्र संदेश,
"मै पूर्णत: अपने भक्तो कि शक्ति के अधीन हूँ और सदा उनके समीप ही रहता हूँ I मै तो सदा भक्तो के प्रेम का भूखा हूँ और मुसीबत के समय जब भी भक्त मुझे पुकारते हैं मै तुरंत उपस्थित हो जाता हूँ I
10.9.10
श्री साईं सच्चरित्र संदेश,
"यह सांसारिक जीवन अति विलक्षण हैं, जिसके लक्ष्ण धर्म, अधर्म आदि हैं I इनकी चिन्ता केवल वे लोग करते है, जिन्हें आत्मज्ञान का बोध नहीं हुआ होता I "
9.9.10
श्री साईं सच्चरित्र संदेश,
जिसका ह्रदय ब्रह्म मे लीन हो गया है, जो संसार के प्रपंचो से निर्वृत्त हो गया है, जो निर्त्य के सांसारिक प्रपंचो से मुक्त हो गया है, वह ब्रह्म से एकत्व स्थिति का अनुभव करता है और केवल वह ही आनंदमूर्ति है I
8.9.10
श्री साईं सच्चरित्र संदेश,
"भगवान कृष्ण, जो स्वयं परमात्मा हैं, कहते हैं कि "संत मेरा ह्रदय और आत्मा हैं; वे मेरी सजीव प्रतिमा हैं; प्रेम करने वाले और दयालु संत मेरे अलावा कोई अन्य नहीं हैं I" "Krishna who is himself God, says "A Saint is as it were, my soul, my living image and a saint is my beloved and is mysel...
7.9.10
श्री साईं सच्चरित्र संदेश,
बाबा अत्यंत क्षमाशील, शान्त, सरल और संतुष्ट थे I यधपि वे शरीरधारी प्रतीत होते हैं, पर वे यथार्थ में निर्गुण, निराकार और अनंत हैं I संसार मे रहते हुए भी वे अन्दर से निर्मुक्त और आत्मरत हैं I
6.9.10
श्री साईं सच्चरित्र संदेश,
संतो की इस धरती पर अवतार लेने की यही स्थिति होती हैं, वे प्रकट होते हैं और प्रस्थान करते हैं I परन्तु जिस प्रकार संत जीवन व्यतीत करते हैं, उससे वे दुसरो को सांत्वना और सुख पहुंचाते हैं और संसार को पावन करते हैं I
3.9.10
श्री साईं सच्चरित्र संदेश,
मूर्ति, वेदी, अग्नि, प्रकाश, सूर्य, जल और द्विज (ब्राह्मण) आदि सप्त पवित्र उपासना की वस्तुएं होते हुए भी गुरु की उपासना ही इन सभी में श्रेष्ट है I इसलिए अनन्य भाव से उनका पूजन करें I
1.9.10
श्री साईं सच्चरित्र संदेश,
यह देह नाशवान है; किसी न किसी दिन इसका अंत निश्चित है I इसलिए भक्तो को इसके लिए दू:खी न होकर उस आदि-अनंत यानि ईशवर का ध्यान करना चाहिए I
"The body is perishable certainly. It is going to come to an end, at some point of time. Therefore, the devotees should not feel distressed but should concentrate on the eternal."
"The body is perishable certainly. It is going to come to an end, at some point of time. Therefore, the devotees should not feel distressed but should concentrate on the eternal."
31.8.10
संदेश
मस्तिष्क इन्द्रियों की अपेक्षा महान है। शुद्ध बुद्धिमत्ता मस्तिष्क से महान है। आत्मा बुद्धि से महान है, और आत्मा से बढकर कुछ भी नहीं है।
Mind is greater than the senses. Pure intellect is greater than the mind. Soul is greater than the intellect. There is nothing greater than the soul.
(Swami Sivananda)
Mind is greater than the senses. Pure intellect is greater than the mind. Soul is greater than the intellect. There is nothing greater than the soul.
(Swami Sivananda)
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