बाबा भक्तों को उनकी इच्छा अनुसार ही सेवा करने दिया करते थे और इस विषय में किसी प्रकार का हस्तक्षेप उन्हें सहन नहीं था. एक अवसर पर मौसीबाई बाबा का पेट बलपूर्वक मसल रही थीं, जिसे देखकर दर्शकगण व्यग्र होकर मौसीबाई से कहने लगे की " मां कृपा कर धीरे से पेट दबाओ, इस प्रकार मसलने से तो बाबा की अंतड़ियाँ और नाड़ियाँ ही टूट जाएँगी. वे लोग अभी इतना कह भी नहीं पाए थे की बाबा अपने आसन से तुरंत उठ बैठे और अंगारे के समान लाल आँखें कर क्रोधित हो गए. उनको कोई रोक सके ऐसा साहस किसी में नहीं था. उन्होंने दोनों हांथों से अपने सटके का एक छोर पकद कर नाभि में लगाया और दूसरा छोर ज़मीन पर रख कर उसे पेट से धक्का देने लगे. ऐसा प्रतीत होने लगा की वह पेट में छेद कर प्रवेश कर जायेगा.सभी किंकर्तव्यमूढ़ हो रहे थे. उन लोगों का मौसी बाई को सिर्फ इतना संकेत देने का था की वो सहज रीति से सेवा करैं. किसी की इच्छा बाबा को या मौसी को कष्ट पहुचाने की नहीं थी. परन्तु बाबा तो अपने कार्य में किसी का हस्तक्षेप कण मात्र भी न होने देना चाहते थे. कुछ देर बाद बाबा का क्रोध शांत हो गया और वो सत्का छोड़ कर पुन: आसन पर विराजमान हो गए.
इस घटना से बाबा ने अपने भक्तों को यह शिक्षा प्रदान की कि अब दूसरों के कार्य में कभी भी हस्तक्षेप न करेंगे और सबको उनकी इच्छानुसार ही बाबा कि सेवा करने देंगे. केवल बाबा ही सेवा का मूल्य आंकने में समर्थ थे. ॐ साईं राम