एक दिन दोपहर की आरती के पश्चात भक्तगण अपने घरों को लौट रहे थे, तब बाबा ने निमिन्लिखित सुन्दर उपदेश दिया :
" तुम चाहे कहीं भी रहो, जो इच्छा हो, सो करो, परन्तु यह सदैव स्मरण रखो की जो कुछ तुम करते हो, वह सब मुझे ज्ञात है. मई ही समस्त प्राणियों का प्रभु और घाट - घाट में व्याप्त हूँ. मेरे ही उदार में समस्त जड़ व चेतन प्राणी समाये हुए हैं. मै ही समस्त ब्रह्माण्ड का नियन्त्रनकर्ता व संचालक हूँ. मैं ही उतपत्ति ,स्थिति व संहारकर्ता हूँ. मेरी भक्ति करने वालों को कोई हानि नहीं पहुंचा सकता. मेरे ध्यान की उपेक्षा करने वाला, माया के पाश में फँस जाता है. समस्त जन्तु, चीटियाँ तथा दृश्यमान , परिवर्तमान और स्थायी विश्व ही मेरा स्वरुप है."