14.6.10

संदेश

जिस प्रकार वस्त्र शरीर से भिन्न हैं, वैसे ही आत्मा शरीर से भिन्न हैं, आकाश की तरह सबमें व्यापक हैं। शरीर को जो इन्द्रियाँ मिली हुई हैं, उनके द्वारा शुभ कर्म करने चाहिए। सदैव शुभ देखना, सुनना एवं बोलना चाहिए।