31.5.10

श्री साईं सच्चरित्र संदेश

जय साईं राम
करोड़ो जन्मो के पुण्यो के संचय से संतो से मिलने का सौभाग्य प्राप्त होता है I केवल तभी संत समागम के सुख का अनुभव होता है, जिससे भक्ति उत्त्पन होती है I
(Pg 755, Adhaya 49 Sai Sachitra Dr R.N.Kakria)

29.5.10

श्री साईं सच्चरित्र संदेश

जिस प्रकार चमकती हुई बिजली क्षण मे ही दिखाई देना बन्द हो जाती है,या सागर पर तरंगे कुछ क्षण के लिए ही प्रकट होती है; उसी तरह शरीर से सबंधित सुख भी क्षण भंगुर है I इस पर भी कुछ विचार करो ?
(CI 36 Adhaya 08 Sai Sachitra Dr R.N.Kakria)

25.5.10

श्री साईं सच्चरित्र संदेश

जीवात्मा और परमात्मा का एक ही होने का बोध ही तत्व ज्ञान है I उपनिषद उसे ब्रह्म ज्ञान कहते है I परमात्मा की उपासना और सेवा भी वही हैं I भक्तो के भगवान कहने का भी यही अर्थ है I
(CI 64 Adhaya 08 Sai Sachitra Dr R.N.Kakria)

24.5.10

श्री साईं सच्चरित्र संदेश

जिसे अद्वेत अवस्था के ज्ञान की प्राप्ति हो गई हैं; यानि जिसे यह ज्ञान हो गया है की ब्रह्म और गुरु एक हैं और जो इस भाव से उपासना करता है, वह सुगमता से माया पर विजय प्राप्त कर लेता है I
(CI 65 Adhaya 08 Sai Sachitra Dr R.N.Kakria)

21.5.10

श्री साईं सच्चरित्र संदेश

भले ही यह मानव शरीर अशुभ, नशवर और क्षण भंगुर हैं, फिर भी ईशवर प्राप्ति का यही एकमात्र साधन है और उसका मंगल धाम भी है I
(CI 24 Adhaya 08 Sai Sachitra Dr R.N.Kakria)

19.5.10

श्री साईं सच्चरित्र संदेश

संतो का ह्रदय मोम से भी नरम तथा अन्तब्राह्मा मक्खन जैसा कोमल होता है I भक्तो के प्रति उनका प्रेम निस्वार्थ होता है; क्योकि केवल भक्तो को ही वे अपना सगा - सबंधी समझते हैं !
(CI 110 Adhaya 07 Sai Sachitra Dr R.N.Kakria)

18.5.10

Summer is here and its going to be equally harsh to the animals around us. Kindly do your tiny bit by keeping a bowl of fresh water out side your balcony or garden.

17.5.10

श्री साईं सच्चरित्र संदेश

साईं स्वयं ज्ञानावतार होकर भी वे सदेव अज्ञानता का प्रदर्शन किया करते थे I संसार मे अपने लिए पहचान बनाने और आदर सत्कार पाने के लिए कोशिश करने से उन्हें सदेव अरुचि थी I श्री साईं बाबा का ऐसा वेशिष्ट्ये था I
(CI 34 Adhaya 07 Sai Sachitra Dr R.N.Kakria)

13.5.10

श्री साईं सच्चरित्र संदेश

यह पूर्व जन्मो मे एकत्रित शुभ कर्मो का ही फल है की हमे श्री साईं चरणों में आने का सोभाग्य प्राप्त हुआ हैं, जिससे हमारा चित्त शान्त हुआ हैं और हम सांसारिक चिन्ताओ और प्रपंचो से मुक्त हुए हैं I
(CI 26 Adhaya 07 Sai Sachitra Dr R.N.Kakria)

12.5.10

श्री साईं सच्चरित्र संदेश

बाबा स्वयं में आनंद-मग्न व तल्लीन थे I वे यथार्थ में अखण्ड सच्चिदानंद थे I मै उनकी महानता और अद्वितीयता का वर्णन कैसे कर सकता हूँ ? जो भी साईं के चरण कमलो की शरण लेगा, उसका विशवास उनमे द्रढ़ हो जायेगा और उसे आत्म साक्षात्कार की प्राप्ति होगी I
(CI 28 Adhaya 07 Sai Sachitra Dr R.N.Kakria)

श्री साईं सच्चरित्र संदेश

"गत जन्मो के शुभ संस्कारो के परिणाम स्वरूप ही हमारी भेंट ऐसे संत से हुई है, जो ईशवर के अवतार हैं,उन्हें द्रढ़ता से अपने ह्रदय मे बसा लो, ताकि मरते दम तक हम उन्हें खो न सकें"
(CI 25 Adhaya 07 Sai Sachitra Dr R.N.Kakria )

11.5.10

श्री साईं सच्चरित्र संदेश

यह मेरा वेशिष्ट्ये है की जो भक्त मेरी शरण आकर एकचित्त होकर मेरी पूजा करते है और मन मे श्रद्धा भाव से मेरी सेवा करते है, में सदेव उनकी रक्षा करता हूँ और उनके कल्याणार्थ में सदेव चिंतित रहता हूँ I

(CI 34 Adhaya 06 Sai Sachitra Dr R.N.Kakria )

10.5.10

वैद, शास्त्रों, श्रुतियो, और स्मृतियों के पठन पाठन से सत्य और असत्य मे भेदभाव की विवेकशक्ति जाग्रत होगी और अनुभव होगा की गुरु के शब्द ही वेदांत हैं I ऐसा होने पर परमानन्द की प्राप्ति स्वत: ही हो जाएगी I

(CI 32 Adhaya 06 Sai Sachitra Dr R.N.Kakria )

4.5.10

मोक्ष

मन को अपना गुलाम बनाकर उससे मोक्ष का काम लेना चाहिए। मन को कामना,विषय, इच्छा और तृष्णा आदि से खाली करके उसमें ईश्वरीय प्रेम भरना चाहिए। सदैव चौकस होकर मन पर निगरानी रखनी चाहिए तथा आत्मसुख को पाकर उसी में मस्त रहना चाहिए। मन कोई वस्तु नहीं है। मन तुम्हारी ही शक्ति से कार्य करता है। तुम मन से भिन्न ज्योतिस्वरूप आत्मा हो।
Hariom
यह जानना कि हमारा मालिक कौन है, आम इनसान के बस की बात नहीं। हमारे असली मालिक वह पिता-परमेश्वर हैं, जो हर समय हमारा ध्यान रख रहे हैं। चाहे हम सोए हुए हों या जगे हुए हों, वह हमारा ख्याल कर रहे हैं कि हमें कोई तकलीफ न हो, हमारे साथ सब कुछ ठीक-ठाक हो। हमें हर समय खाने की चीजें मिलती रहती हैं। चाहे वह कपड़ा पहनें, न पहनें, पर वह हम सबके लिए कपड़े जरूर तैयार रखते हैं। और हर समय, हर पल, हर जगह जहां भी हम हों, वह हमारे अंग-संग रहते हैं। अगर हम जान लें कि हम प्रभु के ही अंग हैं, उन्हीं का रूप हैं, तो फिर हम अपनी असली मंजिल की ओर बढ़ पाएंगे। महापुरुष हमें यही समझाते हैं कि हम इस माया की दुनिया के जाल में न फंसें।हम लोग यह भूल जाते हैं कि हम कौन हैं। हम सोचते हैं कि हम पिता हैं, माता हैं, बच्चे हैं, भाई-बहन हैं। हम सोचते हैं कि हम अध्यापक हैं, डॉक्टर हैं, इंजीनियर हैं। परन्तु हम सब भूल जाते हैं कि हम प्रभु की संतान हैं, हम खुदा के बंदे हैं, हम एक-दूसरे से अलग नहीं। प्रभु कहीं आसमान में नहीं, हम सबके अंदर बसे हैं। सारे महापुरुष इस धरती पर आकर हमें यही समझाते हैं कि हम यह जानें कि हम कौन हैं। ॐ साईं राम

2.5.10

श्री साईं सच्चरित्र संदेश

कर्म, योग,ज्ञान और भक्ति ईशवर प्राप्ति के चार मार्ग हैं I हालाँकि यह चार अलग दिशाओ मे जाते है; परन्तु सभी ईशवर प्राप्ति है I

 (CI 15 Adhaya 06 Sai Sachitra Dr R.N.Kakria )

1.5.10

श्री साईं सच्चरित्र संदेश

यह भागवत गीता के वचन हैं I साईं कहते हैं की इन्हें शाशवत सत्य माना जाना चाहिए I भोजन और वस्त्र का कभी अभाव नहीं होगा इसलिए इनके लिए अधिक चिंतित कभी मत हो I

संतमत: धर्म

धर्म ये नहीं के तुम हिन्दू हो, मुस्लिम हो, सिख हो या ईसाई हो..धर्म परमात्मा ने बनाया है एक, जिससे सब अपने-अपने सदभाव से चलते है सूरज, चाँद, सितारों का भी धर्म है, जो उनका सदभाव बना दिया गया है उसके हिसाब से चलते है अपने सदभाव के अनुरूप ही वो व्यावहार करते है और वो ही धर्म है, तो जब हम अपने अज्ञान को स्वीकारने को तैयार हो जाते है तो हममे धार्मिक होने के लक्ष्ण पैदा हो जाते है और धार्मिक आदमी की ये बहोत बड़ी खासियत है की वो मुह बंद रखता है, वो तर्क-वितर्क नहीं देता फिर, वो तो कहता है अच्छा जी नमस्कार तुम बड़े और मै छोटा ठीक है, फिर झगडा होता नहीं है क्युकी ज्ञानी जिसको की अपने अज्ञान का पता चल गया वो तर्क देता ही नहीं है, एक तर्क तुम दो एक मै दू बात बढती चली जायेंगी इसलिए धार्मिक व्यक्ति को कभी हरा ही नहीं सकते क्युकी वो झगड़ने का मौका ही नहीं देता ये बहोत अच्छी बात है उसकी तो संत बता रहे है की जब भी ध्यान देना अपने अज्ञान पे ध्यान देना की क्या मालूम नहीं है,जब पता चल जायेगा की जो ज्ञान है वो छोटा सा है और अज्ञान बहोत बड़ा है, तो वो हमारे
धार्मिक होने की पहली निशानी है