16.6.10

संदेश

जीवन में ऐसे कर्म किये जायें कि एक यज्ञ बन जाय। दिन में ऐसे कर्म करो कि रात को आराम से नींद आये। आठ मास में ऐसे कर्म करो कि वर्षा के चार मास निश्चिन्तता से जी सकें। जीवन में ऐसे कर्म करो कि जीवन की शाम होने से पहले जीवनदाता से मुलाकात हो जाय।