11.6.10
रूचि और आवश्यकता
ऐसा कोई मनुष्य नहीं मिलेगा, जिसके पास कुछ भी योग्यता न हो, जो किसी को मानता न हो। हर मनुष्य जरूर किसी न किसी को मानता है। ऐसा कोई मनुष्य नहीं जिसमें जानने की जिज्ञासा न हो। वह कुछ न कुछ जानने की कोशिश तो करता ही है। करने की, मानने की और जानने की यह स्वतः सिद्ध पूँजी है हम सबके पास। किसी के पास थोड़ी है तो किसी के पास ज्यादा है, लेकिन है जरूर। खाली कोई भी नहीं। हम लोग जो कुछ करते हैं, अपनी रूचि के अनुसार करते हैं। गलती क्या होती है कि हम आवश्यकता के अनुसार नहीं करते। रूचि के अनुसार मानते हैं, आवश्यकता के अनुसार नहीं जानते। बस यही एक गलती करते हैं। इसे अगर हम सुधार लें तो किसी भी क्षेत्र में आराम से, बिल्कुल मजे से सफल हो सकते हैं। केवल यह एक बात कृपा करके जान लो। एक होती है रूचि और दूसरी होती है आवश्यकता। शरीर को भोजन करने की आवश्यकता है। वह तन्दुरूस्त कैसे रहेगा, इसकी आवश्यकता समझकर आप भोजन करें तो आपकी बुद्धि शुद्ध रहेगी। रूचि के अनुसार भोजन करेंगे तो बीमारी होगी। अगर रूचि के अनुसार भोजन नहीं मिलेगा और यदि भोजन मिलेगा तो रूचि नहीं होगी। जिसको रूचि हो और वस्तु न हो तो कितना दुःख ! वस्तु हो और रूचि न हो तो कितनी व्यथा ! खूब ध्यान देना कि हमारे पास जानने की, मानने की और करने की शक्ति है। इसको आवश्यकता के अनुसार लगा दें तो हम आराम से मुक्त हो सकते हैं और रूचि के अनुसार लगा दें तो एक जन्म नहीं, करोड़ों जन्मों में भी काम नहीं बनता। कीट, पतंग, साधारण मनुष्यों में और महापुरूषों में इतना ही फर्क है कि महापुरूष माँग के अनुसार कर्म करते हैं जबकि साधारण मनुष्य रूचि के अनुसार कर्म करते हैं। जीवन की माँग है योग। जीवन की माँग है शाश्वत सुख। जीवन की माँग है अखण्डता। जीवन की माँग है पूर्णता। आप मरना नहीं चाहते, यह जीवन की माँग है। आप अपमान नहीं चाहते। भले सह लेते हैं, पर चाहते नहीं। यह जीवन की माँग है। तो अपमान जिसका न हो सके, वह ब्रह्म है। अतः वास्तव में आपको ब्रह्म होने की माँग है। आप मुक्ति चाहते हैं। जो मुक्तस्वरूप है, उसमें अड़चन आती है काम, क्रोध आदि विकारों से।